पान:संपूर्ण भूषण.djvu/223

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-=-=-=-=-=-=-=-=- १७३ फुटक बारह हजार असबार जोरि दलदार ऐसे अफल खान आयो सुरसाल है। सरजा खुमाने मरदान सिवराज बीर गंजन गनीम आयो गाढे गढ़पाल है ॥ भूषन भनत दोऊ दल मिलि गये बीर, भारत सो भारी भयो युद्ध बिकराल है। पार जावली के बीच गढ़ परताप तलै स्रोत भयो सोनित स अजौं धरा लाल है ।। ११ ।।। (११) सुरसाल-राक्षस. गंजन-नाश करणारा. सोने. अजौं=अद्यापः कत्ता के कसया महावीर सिवराज तेरी रूम के चकत्ता तक संका सरसात है। कासमीर काबुल कलिंग कलकत्ता अरु कुल करनाटक की हिम्मत हिरात है ।। विकट विराट बंग व्याकुल बलख बीर बारहो बिलायत सकल बिललात है। तेरी धाक धुंधरि धरा में अरु धाम धाम अंधाधुन्ध आँधी सी हमेस हहरात है ।। १२ । । (१२) अरु-आण. हिरात है-हरली आहे. धुंधर-अंधार. तेरे त्रास बैंरी बधू पवत न पानी कोऊ पवित अघाय धाय उठे अकुलाई है। कोऊ रही बाल कोऊ कामिनी रसाल सो तो भई बेहवाल भागी फिरै बनराई है । साहि के सपूत खुद आलम खुमान सुनो भूषन भनत तरी कति बनाई है। दिल्ली को तखत तजि नींद खानपान ताज सिवा सिवा बकत-से सारी पातसाई है ॥ १३ ॥ बंद कीने बलख सो बैर कीनो खुरासान कीनी हवसान पर पातसाही पलही । बेदर कल्यान घमसान कै छिनाय लीने जाहिर जहान उपखान ये ही चलही ।। जंगकरि जोर सो निजाम साहि जेर कीनी रन में नमाय हैं बुन्देल छलबल ही। ताके सब देस लूट शाहजी के सिवराज कुटी फौज अज़ीं मुगलन हाथ मलही ॥ १४ ॥ (१४) उपखान-म्हण. मलही-चोळतात.