पान:संपूर्ण भूषण.djvu/222

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१७२ काटकर बेर बीच कै गयौ । भूषन भनत मुगलान सबै चौथ दीनी । हिन्द में हुकुम साहि नंद जी को व्है गयो ।।७।। (७) बँट-दिशा. सबै–सर्व. चौथ-चौथाई. | मारे दल मुगल तिहारी तलवार आज उछलि बिछले म्यान बाम ते निकासती । तेरी तलवार लागे दूसरी न माँगे कोऊ काटि के करेजा स्रोन पीवत बिनासतीं ।। साहि के सपूत महाराज सिवराज बीर तेरी तरवार स्याह नागिन ते जासती । ऊँट हय पैदल सवारन के झुण्ड काटि हाथिन के मुण्ड तरबूज लौं तरासती ।। ८ ।।। (८) उछल-उसळून. बिछालेअलग होऊन. बामी-बळि. निकासती= निघते. स्याह-काळी. तरसती–कापते. जासत=ज्यास्त. तेरी स्वारी माँझ महाराज सिवराज बली केते गढ़पतिन के पंजर मकि गे। केते बर मारि के बिडारे किरवानन ते केते गिद्ध खाय केते अंबिका धकि गे ॥ भूषन भनत रुण्ड धुण्ड के माल करि पार पाँध नाँदिया के भार ते भचकि गे । दिगो पहार बिकराल भुवमण्डल के सेस के सहस फल कच्छप कचकि गे ।। ९ ।।। (९) भचकि गे=पीडा झाली. बिडारे टाकले. अचाक मेळखाऊन गेली. नद्या-नंदीबैल. भचाक =विस्मित झाला. दूटिंग-तुटला. फचाक गे=कुचलून गेला. तखत तखत पर तपत प्रताप पुनि नृपति नृपति पर सुनि है अवाज़ की । दण्ड सातौ दीप नवखंडन अदंड पर नगर नगर पर छावनी समाज की ॥ उदधि उदधि पर दाबनी ख़ुमानजू की थल थल ऊपर सुबानी कविराज की । नग । नग ऊपर निसान झरि जगमगे पग पग ऊपर दुहाई सिवराज की ॥ १० ॥