पान:संपूर्ण भूषण.djvu/218

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त्रशाल-दशक १६८ ॥ साल की। जंग जीतिलेवा ते वै हैकै दामदेवा भूप सेवा लागे करन महेवा महिपाल की ॥ ५ ॥ (५) चाक चक-दृढ, स्वच्छ. अचाकचफ अफ स्मात्, करेरी-कठिण. जीतिले वा=जिंकणारा.महेवा महिपाल-छत्रसाल.दामदेवा-करभार देणारा. | साँगन सो पेलि पेलि खग्गन सो खेल खेलि समद सा जीता जो समद लीं बखाना है। भूषन बुदेला मनि चम्पत सपूत धन्य जाकी धाक बचा एक मरद मिया ना है ।। जंगल के बल से उदंगल प्रबल लूटा महमद अमी खाँ का कटक खजाना है ॥ बीर रस मत्ता जाते काँपत चकत्ता यारो कत्ता ऐसा बाँधिये जो छत्ता बाँधि जाना है ॥ ६॥ (६)साँगन=भाले, सम्व-समुद्र. अब्दुस्समद-दिल्लीचा सरदार. उदंगल= उदंड, उन्मत्त. मत्ता-मस्त, भाजलेला. कत्ता-तलवार. छत्ता-छत्रसाल. चकत्ता=औरंगजेब. बड़ी औड़ी उमड़ी नदी सी फौज छेकी जहाँ मेड़ बेड़ी छत्रसाल मेरु से खरे रहे। चम्पति के चकवे मचायो घमासान वैरी मलियै मसानि आनि सौह जे अरे र है॥ भूषन भनत भक रुण्ड रहे रुण्ड मुण्ड भेव के भुसुण्ड तुण्ड लोहू सो भरे रहे। कीन्हो जस-पाठ हर पटनटे ठाट पर काठ लौं निहारे कोस साठ लौं डरे रहे ॥ ७ ॥ (७) ओडीखोल. उमडी=उचंबळली. छेकी-अडकली. मेंड-मर्यावा, सीमा. चकचक्रवतीं. अरे रहें-अडून बसले. पठनेटे=पठाण. लोहू सों-रक्ताने. काठ छौंलाकडाप्रमाणे. देस दहबट्टि आयो अगरे दिली के मंडे बहरि मानौ दल जिमि देवा को । भूषन भनत छत्रसाल छ तपाल मनि ताके ते कियो बिहाल जंग जीति लेवा को ॥ खंड खंड सोर यौ अखंड महिमंडल में मंडी ते बुन्देलखंड मंडल महेवा देस दहबट्टन भनत छत्रसालखंड खंड सोर