पान:संपूर्ण भूषण.djvu/216

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श्रीछत्रशाल दशक ~~ दोहा इक हाड़ा बूंदी धनी मरद महेवा वाल। सालत नौरंगजेब को ये दोनों छतसाल। ६ देखी छत्ता पता यै देखो छतसाल। वै दिल्ली की ढाल यै दिल्ली ढाहन वाल॥ भुज भुजगेस की वै संगिनी भुजंगिनी सी खेदि खेदि खातीं दी: दारुन दलन के । बखतर पाखरिन बीच धसि जाति मन पैरि पार जात परबाह ज्यों जलन के ॥ गैया राय चंपति को छत्रसाल महाराज भूषन सकत को बखानि यो बलन के । पछी पर-छीने ऐसे परे पर छीने बीर तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के ॥ १ ॥ (१) भुज भुजगेस=बाहुरूपसप. भुजंगिनी=सर्पिणी. खेदि वेदिधवूिन. दह-दीर्घ. दारुन-कठिण. बखतर=चिलखत. पाखरन-कवच. पॅसजात= शृसते. पार =पोह न. परबाह-प्रवाह, जलन के=पाण्याचे. पर-छीने=पंख 'कापलेलं ( हात पाय तुटलेले). बर छीने है–बळ हिसकावून घेतले, हत. बछ ६.ले. रैया राय चंपति को चढ़ी छत्रसालासह भूषन भनत समसर जोम जमकै । भाद की घटा सी उठीं गरदै गगन धेरै से समसरे फेरै दामिनी सी दमकै ॥ खान उमरावन के आन राजा रावन के सुनि सुनि उर लागै घन कैसी घमकैं। मैहर बगारन की अरि के अगारन की नाँधती पगारन नगारन की धमकै ॥ २ ॥