पान:संपूर्ण भूषण.djvu/183

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३३३ श्रीशिवराज-भूषण -=-=-=-=-=-= =-=-=-- =-=- 5 E घर कैतवा" पन्हुति गनौ उतप्रेक्ष° बहुरि बखानि । पुनि रूपकातिसयोक्ति भेदक अतिसयोक्ति सुजानि ॥३७२॥ अरु अङ्गमातिसयोक्ति चंचल अतिसयोक्तिहि लेखि। अत्यंत अतिसै उक्ति पुनि सामान्य चारु विसेखि ॥ । तुलियोगिता” दीपक अवृत्ति प्रतिवस्तुपम दृष्टान्त"।। सुनिदर्सना व्यतिरेक और सहोक्ति बरनत शान्त ॥३७३॥ सु विनोक्ति३५ भूषन समासोक्ति हु परिकरौ अरु वंस।. परिकर सु अंकुर श्लेष* त्यो अप्रस्तुतीपर-संस॥ । परयाय° उक्ति गनाइए व्याज- स्तुति हु आक्षेप।। बहुरि विरोध विरोध भास विभावना सुख खेप ॥ ३७४ ।। सुविसेष उक्ति असम्भवौ बहुरे असंगति लेखि । पुनि विषम सम° सुविचित्र प्रहषन अरु विषादन पेखि॥ कहि अधिक अन्योन्य हु विसेष व्याघात भूषन चारु । अरु गुम्फ एकावली" मालदीपक हु पुनि सारु ॥ ३७५ ॥ 'युनि यथासख्य' बखानिए परजाय अरु परिवृत्ति। परिसंख्य कहत विकल्प हैं जिनके सुमति सम्पत्ति ॥ बहुप्यो समाधि समुचयो पुनि प्रत्यनीक बखानि । पुनि कहत अर्थापत्ति" कविजन काव्यलिंगहि जानि ॥ ३७६ ॥ अरु अर्थ अन्तरन्यास भूषन प्रौढ७२ उक्ति गनाय । सम्भावना मिथ्याध्यवसितऽरु यो उलासही गाय ॥ अवज्ञा अनुज्ञा लेस तद्गुन पूर्वरूप° उलेखि ।। अनुगुन अतद्गुन 'मिलित उन्मलितहि पुनि अवरेरिख ।।३७७॥ सामान्य और विशेष पिहितौ प्रश्न उत्तर जानि।। युनि व्याज-उक्ति रु लोकउक्त° सु छेक उक्ति बखानि ॥ ३