पान:श्रीएकनाथ.pdf/47

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अंक २ रा. माफ्, तो मय पाया हूं जवाहिरात, और जागीर हजारो लाख. अगर आप कौलके सच्चे हो तो एक मानो गरिबकी बात्, उस्ताद हमारे थक गये काम करते हुवे दिन रात. तातील मिलना उनकू हर जुमेरात्, चूंके दत्तात्रय हमारे भगवान् का दिन कहला जाता है सबके जात. - बादशहा-खुशी हू मय् तेरे सवाल सुन्ता हुवां. माफ किया गुन्हा इसकू जैसा तेरा मनसुबा हुवा. जुमे रातकू तातील दिलाता हैयेहेसान मंद हुवा, और तुमने दत्तात्रय भगवानका नाम लेना संसार मे गिरफ्तार न हुवा. अब मैफिल्मे बुलाव परियोंकू ऐसा इन्ते जाम् हुवा, सब मिलके खुशी हो जायंगे, तुम बहोत परिशान हुवा. तूही नानक होके मुजे महेलमें मिला हुवा, मयने तुजे आप पूरा पैछाना हुवा. महेलमें तू कैसा आया मुजे ताजुब हुवा, तूही मेरी जान बचायी, मय एहेसान मंद हुवा. , एकनाथ-मुना मयने तोफकी फैर जब अंदाज हुवा, बादशाकी जान घबराके बहोत परिशान हुवा. नानकका मयने लिबाज पेना बहुत खुशी हुवा, उस्तादके पांवसे मय आपका महेल दाखल हुवा. आमके झाडपर चढके, महेलमे मय तनबीसे अंदर दाखल हुवा, मारुजा आपकु किया के गनीमका हमला हुवा. ( नाच सुरू होतो.) गोरस बेचन चले गोरी मथुरा । तुम केंव ठाडे नंदकिबिछोरा ॥ध्रु०॥ मत खेचो मेरी फारी चुनेरी। सास बुरी मैंकु देवेंगी भारी ॥ गोरस० ॥१॥ चैतनकी मेरी आंगिया फारी । काय कहूं मै नंगी उघरी ॥ गोरस० ॥ २॥ हांकारहुकार मेरा गरवा फोरा, । ठाके गोरस सबही गीरा ॥ गोरस० ॥३॥ एका जनार्दनीं सबही भेटे, । लागा चुटका फेर न छुटे ॥ गोरस० ॥४॥ छोडा तन-धन-गेहका काम । ज्यासे हरिसे बदलाम ॥ध्रु०॥ हम तो रामभजनमो बैठे । याबिन साधन सबही झूटे ॥ छोडा० ॥१॥ कछु नही जाने मुद्रा माला । पिया नामामृतका प्याला ॥ छोडा० ॥२॥ खाना पिना बिसर पडा । नजरम्याने अल्ला खडा ॥ छोडा०॥३॥ एका जनादनका बंदा । तिनो लोकमे देखे खुदा ॥ छोडा० ॥४॥