पान:श्रीएकनाथ.pdf/45

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अंक २ रा. लढाईका जिक्र कैसा हुवा उसका बयान् मुन्नेके वास्ते मय् बहुत परिशान् हय्. जनार्दनपंत-तकसीर माफ फिदवीका मारूजा कदम् बोसी करके ये हयू के, आजका लढाईका जिक्र मय बिलकूल जानता नहीं. जब कीलेक दुश्मनोने घेरा दिया, उस वक्त मय् बिलकूल होशमे नयी था. मय भगवतके ध्यानमे इतना मष्गुल था के, लढाई कैसी हुई और फतेमंदी किनकी हुइ, ये हाल मुजे बिलकूल मालम् नही. तोफकी फयर मयने सुनी नही. आजका हुजरे पुरननके नाम का डंका ये बहादरने बजाया. (एकनाथास उद्देशून ) इसका इस्मे शरीफ एकनाथ हय्. और ये मेरा बहोत प्यारा चेला हय्. सबके दिलकी खायष इसने पूरी किया. अल्लाने इसकू फता दिया. ये आपके कदमकी भलाई हय. सरकारकू तसलीम बजाव. कुरनीसाद् करो. और लढाईका बयान् करो. (एकनाथ कुरनिसाद करतो. बादशहा त्यास आपल्याजवळ बसवितो.) बादशहा बेटा एकनाथ, तूं क्या हमारे दिवान बहादर गाजी फौजबक्षका चेला हय् ? तूं तो बिलकुल छोकरा हय्. आपतक तेरेकू लढाईका इतना इल्म् कहांसे पैदा हुवा, के तूने तोफलखानको कैद करके लाया हय्. लढाइका जिकर कैसा हयू मुजे बयान् कर, एकनाथ तकसीर माफ्. सरकारकी फौज तोथी पाचहजार, फिर हमने कीलेमे रख दिया हजार, और चोर रास्तेसे लेगाया बाहेर चार हजार. दुश्मन् बहोत् हुवा बेजार, जब उसने दोहो तौसे देखा भडिमार, पहले तो आपने लोगोका टूटगया कु, फिर हम बोले बिरादरो जरा ठयरो सबूर. एक बुढीनें तोफलखानकू लेगाया दूर, उसे बहेकाके बतातीथी रस्ता चोर, वापस लोट गई किसे मालम नही उसका फंद फितूर. हम लोगोनें तोफलखानको किया गिरफ्तार, और लाया हय् कदम् बोसीके लिये, ह्या दरबार. उम्मेद हृय् सबकू माफ हो जायगा कूसूर, पावेगा वो आपनी गद्दी की जायदार और. हक्क होगये जंगमे इसके फरजंद और गोलंदाज मानिंद वजीर, सजा ये पाया हय् खुदासे बेतकार. बादशहा-येजा बात् बेजा बात्, तुम करते हो हमारे सात,