पान:श्रीएकनाथ.pdf/44

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२८ श्रीएकनाथ. मुगंदे पुरी करे. फिलहाल जो जंग हुवा और सरकारका दुश्मन तोफलखान जिसनें आपने कीले दौलताबादके पन्हेकु घेरा दियाथा, उसके फरजंदकू और बक्षीकू शिकस्त किया. और तोफलखानकू गिरफ्तार करके सरकारके कदम् बोसिके लिये पाबंद करके लाया । हृय्. दरबारके अंदर आनेकी राहा देखता हय्. बादशहा–माषा अल्ला, सुभान अल्ला, असत् गफरुल्ला ! या - एलाही ये सब तेरी कुदरत् हय्. आज जो तुनें मुजपर करम किया, इसका एहसानमंद मय् कितना होगया हय् ? तू पाक हय्, मयू गुन्हेगार. हय्. अये मेरे वजीर और तमाम सरदार लोग, जनार्दनपंतने ये जो बहोत् दिलपसंतीका काम किया हय् इसका मोबदला उसकू इनाम या जागीर देना ज़रूर हय् चके आपके पास फौज सिर्फ पांचहजारथी, और दुश्मन्की तो दसहजार थी. लेकीन् बड़ी ताजूबकी बात हय् के सबकू कतल कमा करके तोफलखानको गिरफ्तार किया और हमारे सामने वास्ते कतल करनेके लाया हय्. ( जासुदास उद्देशून) जाव्, उसकू और जनार्दनपंडतकू अंदर दरबारमे ले आव. (जनार्दनपंत, एकनाथ व कैद झालेला बादशहा प्रवेश करितात. जनार्दनपंतास बादशहा सामोरा येतो व हातात हात घालून आपल्या शेजारी बसवितो.) भालदार-निगारुबरु जनाब मुर्तजा निजामशहा अकाने, दवल्त् किले दौलताबाद और अहमदनगर तक्त्पर रौशन हय, आदबसे, तमीजसे हुशार रहिना. बादशहा-जनार्दनपंत देशपांडे, ये जो तुमने फते मंदीका काम किया, इसके बदला पाले मुलाकात्कू आपकू ये मुर्तजा निजामशहा पादशहा “ गाजी " ये किताब देता हय्, और आपने गलेका मोती और हिरेका कंठा बहोत किंमतवान जवाहिरात् आपक इनाम देता हय्. लेनेका इनकार न कीजिये. शिवाय इसके आपक दसहजारकी जागीर आदा करता हूं. इस बारेमे फौरन् सनद करके आपकू देताहूं. आपके पिछे आप चाहिये उसकू देना. सरकारकी बिलकुल हरकत होनेवाली नहीं. (चाकरलोक पोषाख आणून ठेवतात)