पान:श्रीएकनाथ.pdf/33

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अंक २ रा. १७ क्या चीज, जैसी मखडी मर जाती वैसा लहजेमे दुनयेके पडदे परसे चले जाता हय्. ( तोफांचे आवाज होतात.) लैला-या अल्ला, ये क्या बला, इत्ने रात्मे ये क्या गिल्ला हृय् ! इसमेसे आबू वल्ला कैसे सलामत् निक्ल् जावे ? ( बादशहाच्या ई गळ्यांत जाऊन पडते.) बादशहा-अय् मेरे प्यारी ये क्या गुल् हय् ? ये ऐसे रातके वक्त् आपने जानपे क्या आफ्त् आया हय् ? दुश्मन् आनेका मुजेर बिल्कूल् इतल्ला नहि. अब् कोनसी तरकीब निकालूं ? अबू आप्कू ये आफूत्से कोन् बचावेगा ! अये जहांआँफ्री, ये बंदेने कोन्सा। कुसूर कीया तो इसके उपर तूने इस वक्त् दुशमन्कू भेज दीया ! (एकनाथ नानकशाचे वेषाने प्रवेश करतो.) .. एकनाथ-अल्ला रखेगा वैसाभी रहेना ॥ मौला रखेगा वैसाभी रहेना ॥ध्रु०॥ कोइ दिन सिरपर छतर उडावे ॥ कोइ दिन् सिरपर घडा चढावे ॥ कोइ दिन तुरंग उपर चढावे ॥ कोइ दिन पावस खासा चलावे ॥१॥ कोइ दिन् शक्कर दूध मलीदा ॥ कोइ दिन अल्ला मागत गदा ॥ कोइ दिन् सेवक हात् जोड खडे । कोइ दिन नजीक न आवे घोडे ॥२॥ कोइ दिन राजा बडा आधिकारी ॥ एक दिन होय कंगाल भिकारी ।। एका जनार्दनी करत् कर तारी॥ गाफल क्यंव करता मग्री ॥ ३॥ तकूसीर माफ. आप इत्ने गमगीन क्यंव ? ये देवगिरीका कीला, जिसे आप दवलताबाद कहते हय्, ये कुच् अद्नासा चीज नहीं के उसके उपर दुश्मन् आफ्नी तोफ चलाके एक रात्मे ले सके ! हजारो हजार तोफ की फैर हुवी, तो कीलेका एक फत्तर बी उडा न