■ पढ़ते समय व्यक्ति का 'स्व' हमेशा जाग्रत और सक्रिय रहता है, जबकी टी.व्ही. देखते समय आदमी बुद्धू-सा बैठा रहता है, निठल्ला।
■ किताबें दर्शक निष्क्रिय से सक्रिय बनाती है, उसे स्तब्ध से आत्मसक्रिय करती हैं। दर्शक का पाठक बनना, कुछ सोचना शुरू करना है।
■ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बावजून किताबों का कोई विकल्प नहीं है, जैसे शीतपेय (कोल्ड ड्रिक्स) के बावजूद पानी का विकल्प नहीं है।
■ भाषायी संस्कृति को विकसित करने का अर्थ है आत्मविसर्जन को रोकना, राष्ट्रीय आत्मपहचान की रक्षा करना।
■ सस्ती लोकप्रियतावादी चीजों को चारों तरफ बोलबाला है, सच्ची चीजों के लिए यह ऐसी चुनौती है जिसका सामना उन नागरिकों, लेखकों, पाठकों को करना है, जो पुस्तक-संस्कृति के अंग है।
■ किताबों का देश उनका है, जो शब्द से प्यार करते है। पाठकों के बिना देश निर्जन रेगिस्तान है।
■ पुस्तक-संस्कृति के तीन प्रमुख अंग है - लेखक, प्रकाशक और पाठक।
मनोहर श्याम जोशी -
■ किताबें ज्ञान का भंडार होती हैं, इसलिए परिवर्तन में उनकी भूमिका असंदिग्ध है।
चित्रा मुदगल -
■इंटरनेट हमारे सूचना-तंत्र को लगातार नई गति देती चल रही है। जीवन में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होने के बावजूद वो पुस्तकों का विकल्प नहीं साबित हो सकती है।
■ आज जो युवा पिढ़ी पर अपने बुजुर्गों के प्रति उपेक्षित रवैया रखने का मुद्दा उठ रहा है, उससे मुठभेड करने का एक ही विकल्प हमारे सामने है कि हम उन्हें पुस्तकों से जोड़े।