Jump to content

पान:छन्दोरचना.djvu/186

विकिस्रोत कडून
या पानाचे मुद्रितशोधन झालेले नाही

पीडीएफ सुरेशभट इन च्या सौजन्याने १५९ वृत्तविस्तार [----- ں ں --!----ں ں --lں ں ن ں ں ں ن ں | ] ic{dFATقq$db & چک‘ ४९२ गृहलक्ष्मी [! -- - ७ ~ ! --- ऽ ~ । - ~ ७ --.] ४९३ स्खलितविक्रमा [। ७ ७ -- ७ ७ ॥ --- ७ ७ । -- ७ ७ -] [- - ܟ ܚ ܢ ܝ | ܢ ܢ - ܝ ܚ - | ܢܝ ܚ - ܝ ܚ - [] TܛX 3fàܟܐ ४९५ चकिता [। - ७ ७ ~ ७ - । -- - - | - ७ ~ ~ ७ -] [--ں ں ں ں --lں ں س-ں ں --- lں ں --ں ں --T[lمP}T(f}3 &چ گ‘ [-۔ ۔۔۔ ب --ں lں ں --ں ---ں !--ں ں ----ں ں fdRItft fi[l}3چ وچ بلا [-~ں ----ں l -- س ن ں --~ں !--ں ں ں ---۔ ں [ ] تمfI&f={RTRTf چہ؟ fq ४८८ *मीः कल्याणं” (हे २/१७४), विद्याधर (प्रापै २/१२२), काश्वन (हे); या वृत्ताची मेोडणी जेव्हा [ । --- । --- । --- । -- -] अशी भूझावर्तनी होते तेव्हा त्याला श्रीलीला हें नांव आहे. ४८९ *माप्ती नो मी गौ यदि गदिता वासन्तीयं” (गछ २/११५), मागे सेमन्ती ४८२ पहा. *वासन्तीयं स्यादिह खलु मतौ न्यौ गौ चेतू (गछ २/१२९) असेंहि ओक सूत्र आहे. याची माण्डणी [। ----। - ऽ ७ ७ ७ ७ ७ - - --]] अशी घ्यावी लागेल. या सूत्रांतील शेवटला भाग मूळांत 'मी त्नी म्गौ गश्वेत्' असा तर नसेल ? ४९० ' तो नो भतयगकारयुतश्वेदिह बालाख्या' (गछ २/१६२). ४९१ पड्कजवक्त्रा मागे ४५९ पहा. ४९२ *गृह”लक्ष्मी मागे ४६० पहा. ४९३ स्भौ म्सौ भ्गी स्खलितविक्रमा (भ ३२/१७२-३). ४९४ * भीन्या भङ्गिः” (हे २/३२०), विच्छिति (हे). ४९५ चकिता, * भात् समतनगैरप्टच्छेदे स्यादेिह चकिता” (गछ २/१५०), यति दहाव्या अक्षरानन्तर ध्यावा असें मला वाटतें. ४९६ अश्वगति, ** पञ्चभकारयुताश्वगतिर्यदि चान्त्यसरन्विता ?? (गच्छ २/ १८२). ४९७ अतिशायिनी (पि ८/१३, हे २/२९०), यादवी (हे), *ससजा भजतोऽतिशायिनी भवति गौ दिगधैः” हें सूत्र मलिनाथ टीकेंत शुद्धृत करिती (शिशु ८/७१ ). ‘ ससजा भजगा गु दिक्स्वरैर्भवति चित्रलेखा” (के परिशिष्ट). ४९८ विलम्बतगति, मागे पृथ्वी १६४ पहा.