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पान:छन्दोरचना.djvu/138

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पीडीएफ सुरेशभट इन च्या सौजन्याने R R R वृत्तविस्तार २ अिन्द्रवज्रा-वर्ग अिन्द्रवज्रा-झुपेन्द्रवज्रा-वसन्ततिलका & & fèrtasNT [—— V — — [سس۔ --س۔ بس سس۔ اس س १६ कोल ] 1 - - ܝ - ܢ ܝ | - ܢ ܟ ܝ - ܢ[ م۔ --۔ ں م- --! ہے۔ ں ں ں ہے ں ] ”}faf&r}ہو 66 و& [-۔ س-ں ں ں -----ں ں ں -ں ] ”۹)sqqfRI “ مج& [ – ۔ یہ - ی ں – ں ں --- ] ”R{{gHfRI(tr“ && [---ں --ں ں !--ب ں ں ہـ ں ---- ] abTزمdfaتQo eqRa २१ त्र5षभ। ] ۔۔ -- ں س- ں و | س-ں ب س ---ں --س ں ں २२ शिशु ] س۔ ں ۔س۔ س یہ | --ں بں س-ں ں - ہس۔-- -- २३ स्वर्णाक्षी ] - -- -- ܝ - ܢ ܟ ! - ܟ ܢ ܢܝ -- ܢ ܐ - -[ २४ केतन ]~-- سے ں ں - - ب ں ں-lب -ں ن ----[ २५ विमला ] ں سب ں-----[ टीपा ११ अिन्द्रवज्रा (पि ६/१५), * तौ जो गुरू चेन्द्रवतीन्द्रवज्रा ” ( ॐनुवबृ १०३/३४ ). १२ ** अान्दोलिका ततरगाः सायकैः सायकैर्यतिः ?’ (ममच १६). १४ *स्यौ स्यौ केकिरवम्” (हे २/१९२). १५ श्रुष्पेन्द्रवज्रा ( पि ६/१६), ** श्रुपेन्द्रवज्रा तु जतौ जगौ गः ” ( श्रुववृ १०३/११ ) १६ ** ज्सौ स्यौ कोलः” (हे २/१९४ ). १७ ** प्रतिष्ठित?'; ॐनुपस्थित हे २/१३४), शिखण्डित (गछ २/५७), ‘ श्रुपस्थितमिदं ज्सौ ताद्रकारौ” (के ३/४४). प्रतिष्ठितवृत्ताची मोडणी [। ७ - ७ ७ ७ - ! ---- س -- S! -- [ अशी केल्यास तें पद्मावर्तनी होअील. १८ *व्यवस्थित”, *झुपस्थितमिदं ज्सौ त्सौ यदि गुरुः स्यात् ” ( गच्छ २/१०६ ). १९ ‘समुपस्थिता,” ** तो जौ