१. काल यास्पस, मैन इन द मॉडर्न एज,
(अंग्रेजी अनुवाद जॉर्ज रिटलेट अॅन्ड सन्स, लन्दन १९३३) पृ.
३३।।
२.छांदोग्य उपनिषेद ७/२३/१।।
३. द. ट्वेंटीएथ सेन्चुरी सोशियालॉजी
(संपादक-गुरविच और बिलबर्ट मूर
(दि फिलॉसिफिकल लायब्ररी, न्यूयॉर्क, १९४५) पृ. ९८| ४. दे. एडवर्ड वेस्टर मार्क, ‘एथिकल रिलेटिविटी की प्रस्तावना
(कोगन पॉल, लन्दन, १९३२)
५. दि टुएन्टिएटय सेन्चुरी सोशियालॉजी, ब्रिटिश सोशियालॉजी,
पृ. ५७९।
६. एनसायक्लोपिडिया ऑफ दि सोशल सायन्सेस, भाग सात-आठ,
पृ. ५४१.।
७. दे. एफ. सी. एस. शिलर, ह्यमैनिज्म,
(मैकमिलन लन्दन, दूसरा संस्कारण, १९१२), प्रस्तावना पृ. २१
८. वही, अध्याय १।।
९. वही प. ७।।
१०. दि नोचे, अध्याय ७।
११. कारलिस लेमान्ट, ह्यूमॅनिजम एज ए फिलासफी
(वाट्स एन्ड को, लन्दन, तीसरा संस्करण १९५२), पृ. ३०-३१।
१२. दे. जॉक मारिता टू ह्यूमॅनिजम,
(ज्याफरे ब्लेस, लन्दन, तीसरा संस्कारण १९४१) भूमिका।
१३. कारलीस लैमांट, वही, पृ. ३१।
१४. एथीकल रिलेविटी, पृ. ३१।
१५. पाठक लक्षित करे, भित्रो तथा विपरीतो की सहप्रामाणिकता, विरुद्धो
की नही। जीवन में हमारे सामने ‘करने तथा न करने के बीच
विकल्प का प्रश्न नहीं उइता; 'यह करे' या ‘वह करे' का प्रश्न ही
प्रायः उठता है। द्वन्द्व की स्थिति प्रायः दो मुल्यों को लेकर उठ खडो
होती है।
१६. तु. की. तर्को न प्रमाणसंगृहीतो, न प्रमाणान्तरम्, प्रमाणानामनुग्राहकः
तत्त्वज्ञानाय कल्पते। न्याय भाष्य, १।१।