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पान:संपूर्ण भूषण.djvu/234

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काटकर १८४ बिन्दु लाल भाल फैल्यो कान्ति रवि रोकी सी ।। छूट रही गोरे गोल गाल पै अलक आछी कुसुम गुलाब के ज्यों लीक अलि दोकी सी। मोती सीस फूल ते बिथुरि फैल रह्यो मानो चन्द्रमा ते छूटी हे नछत्रन की चौकी सी ॥ ४७ ॥ (४७) कोकनद नैनी=कमल नयनी. केलि-क्रीडा. अनंग जोति सोफी सी=मदन तेजाने पुकल्यासारखी. अलक-केश. लीक-रेखा, चिन्ह. दो की सी=दोघांप्रमाणे. बिथुरि=विखरून. देखते ही जीवन बिडारा तो तिहारौ जान्यो जीवन नाम कहि बे ही को कहानी में । कैधौं घनश्याम जो कहावै सो सतावै मोहिं निहचै कै आजु यह बात उर अनी मैं ॥ भूषन सुकवि कीजै कौन पर रोसु निज भागिही को दोसु आगि उठात ज्यों पानी में । रावरे हू आये हाय हाय मेघराय सब धरती जुड़ानी पै न बरती जुड़ानी में ।। ४८ ॥ (१८) विडारी–सोडला. जान्यो समजते. जीवनद-जीवनदाताः रोप्नु राग. निहर्च के-निश्चय करून. जुड़ानी=शत झाली. पै परन्तु. बरती= व्रत करणारी मलय समीर परलै को जो करत अति जमकी दिसा ते आयो जमही को गोतु है । साँपन को साथी न्याय चन्दन छुये ते डसै सदा सहबासी विष गुन को उदोतु है ।। सिंधु को सपूत कलपद्रुम को बंधु दीनबंधु को है लोचन सुधा को तनु सोतु है। भूवन भनै रे भुव-भूषन द्विजेस त कलानिधि कहाय कै कसाई कत होतु है ॥ ४९ ॥ । (४९) परलै–प्रलय. जम की दिसान्दक्षिण. ते=पासून. उदोगुहै-उत्पन्न करितो. सोलु–स्रोत, प्रवाह. कलानिधि=चन्द्रकत=कसा ? बन उपवन फूले अंबनि के झोर झूले अवनि सुहात सोभा और सरसाई है। अलि मदमत्त भये केतकी बसंती फूली भूषन बखानै सोभा सबै सुखदाई है। बिषम विडा