पान:संपूर्ण भूषण.djvu/232

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फुटकर १८२ भले भाई भासमान भासमान भान जाको भानत भिखारिन के भूरि भय जाल है। भोगन को भोगी भोगीराज कैसी भॉति भुजा भारी भूमिभार के उभारन को ख्याल है ॥ भावतो समानि भूमि भामिनी को भरतार भूषन भरतखंड भरत भुवाल है। बिभौ को भंडार औ भलाई को भवन भासे भाग भरे भाल जयसिंह भुवपाल है ॥ ११ ॥ (४१) भासमान=सूर्य. भानत-नष्ट करीत. भावतो-आवडती. पौरच नरेस अमरेस जू के अनिरुद्ध तेरे जस सुने ते सुहात सौन सीतलें । चंदन सी चाँदनी सी चादरें सी चहूँ दिसि पथ पर फैलती हैं परम पुनीत लें ॥ भूषन बवानी कवि मुखन प्रमानी सो तो बानी जू के वाहन हरख हंस हीतले । सरद के घन की घटान सी घमंडती हैं मैडू ते उमंडती हैं मंडती महीतले । ४२ ।। (४२) स्नान-श्रवण, कान, सरद-शरद् ऋतु. में एक संस्थान. | साहि के सपूत रनसिंह सिवराज वीर बाही बाही समसेर सिर सत्रुन पै कढ़ि कै । काटे वै कटक कटकिन के निकट भूमें हम सो न जात कह्या सस सम पढ़ि कै ।। पारा बार ताहि को न पावत है पार कोऊ सोनित समुद्र यहि भाँति रह्यो बाढ़ि कै । नादिया की पूंछ गहि पौरि के कपाली बचे काली बची मांस के पहार पर चढ़ि कै ॥ ४३ ॥ (४३) बाही-उगारली. सोनित रक्त. भाँति-प्रकार. नादियानंदी. पूँछ=शेपूट. गहि-धरून. कपाली–महादेव. पहार=पर्वत. | साहि के सपूत सिवराज वीर तेरे डर अडग अपार महा दिग्गज सो डोलिया । बंदर विलायत सो उर अंकुलाने अरु संकित सदाय रहे बेस बहलोलिया ।। भुषन भनत कौल करत कुतुबशाह चारे चहुँ ओर इच्छा एदि