पान:संपूर्ण भूषण.djvu/230

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काटकर १८० (३४) अच्छक-तृप्त. ध क इच्छा. पीवन-स्थूल, नाँगी-नग्न. काह के-कोणाचे. उगलत-ओकत. आसौ-असिव.रावबुद्ध-हाडा छत्रसालाच्या भावाचा पणतू. गजक-खमंग. जा दिन चढ़त दल साजि अवधूतसिंह तादिन दिगन्त लौं दुवन दाटियतु है । प्रल कैसे धाराधर धमके नगारा धूरि धारा ते समुद्रन की धारा पाटियतु है । भूषन भनत भुवगोल को कहर तहाँ हहरत तगा जिमि गज काटियतु है। कॉच से कचरि जात सेस के असेस फन कमठ की पीठि पै पिठी सी बॉटियतु है ॥ ३५ ॥ (३५) अवधतसिंह रीबों ( रेवा ) संस्थानिक. दुवनशत्रू. दाटियतु है-रेटतो. भूरि-धूळ. पर्तटयतु है=भरतो. तगाजिमि=ताग्याप्रमाणे. अस= सर्च. पाठिपै–पाठीवर. | मेचक कवच साजि वाहन बयारि बाजि गाढ़े दल गाजि रहे दीरघ बदन के । भूषन भनत समसेर सोई दामिनी है। हेतु नर कामिनी के मान के कदन के । पैदरि बलाका धुरचान के पताका गहे घेरियत चहुंओर सूते ही सदन के । ना करु निरादर पिया स मिलु सादर यै आये बीर बादर बहादर मदन के ॥ ३६ ॥ | (३६) मेचक-काळा. बयारिबारा. मान के कदन के-मानभंगाचे. बलाका=बेगळा. धुरवान-मेघ. उलदत मद अनुमद ज्यों जलधि जल बल हद भीम कद काहू के न आह के । प्रबल प्रचंड गंड मंडित मधुप वृन्द बिन्ध्य से बिलन्द सिन्धु सात हू के थाह के ॥ भूषन भनत झूल झम्पति झपान झुक झूमत झुलत झहरात रथ डाह के। मेघ से घमंडित मजेजदार तेज पुंज गुजरत कु जर कुमाऊँ नरनाह के ॥ ३७॥