पान:संपूर्ण भूषण.djvu/226

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दर १७६ में । कुच में कठोरताई रति में निलजताई छाँड़ि सब ठौर रही आइ अबलान में ॥ २१ ॥ (२१) ठगोरी-कपट. भौंह-भिवई. बँकाई-बकि कटियान-कंबर. । अदल-न्याय. जहान=जग. ठौर-ठिकाण. सुमन में मकरन्द रहत हे साहि नन्द मकरन्द सुमन रहत ज्ञान बोध है। मानस में हंस बंस रहत हैं तेरे जल हैस मैं रहत करि मानस बिसोध है ॥ भूषन भनत भौसिला भुवाल भूमि तरी करतूति रही अदभुत रस ओध है । पानी मैं जहाज रहे लाज के जहाज महाराज सिवराज तेरे पानिप पयोध है ॥२२॥ (२२) विसोध-दुगंध. रसोध=रसाने भरलेली. पानिप=पाणी, मान. संवैया । चक्रवती चकत्ता चतुरंगिनि चारि यों चापि लई दिसि चक्का । भूप दरीन दुरे भनि भूषन एक अनेकन बारिधि नक्का ॥ औरंगशाह स साहि को नन्द लड़यो शिव शाह बजाय के डक्का । सिंह की सिंह चपेट सहे गजराज करे गजराज सो धक्का ॥ २३ ॥ (२३) चापि ई-दाबून घेतली. दिसि चक्का=दिशा चक्र. दुरे लपले भनि म्हणतो. नक्का-उतरून. सोश, । औरंग सा इक ओर सजे इक ओर सिवा नृप खेलनवारे भूषन दच्छिन दिलिय देस किये दुहँ ठीक ठिकान मिनारे॥ साह सिपाह खुमानहि के खग लोग घटान समान निहारे। आलमगीर के मीर वजीर फिरै चहुगान बटान से मारे २४ (२४) सा-शहा.ओरबाजू चहुगान-चौगान, एक खेळ. बटान चेंडू. श्री सिवराज धरापति के यहि भॉति पराक्रम होवत भारी। दंड लिये भुवमंडल के नहिं कोऊ अदंड बच्यो