या पानाचे मुद्रितशोधन झालेले नाही
४८ जयदेव ॥ ६ ॥ आदर परसि आरु चक्रा मीरिसिदि । वेदके निलुकद निजगुणरस्ना तोरिसिदि || आदिनाथनल्लि लक्ष्यविडिसोदि । नादद मूलॐकारदोळु बेरिर्स.दि ।। जयदेव जयदेव ॥ २ ॥ तंदेत्रि मल्ल नी सद्गुरुनाथा । कंदगे ज्ञानद वस्तु को दूंथा दाता | संदेह बिडिसि एनगे माडिदि प्रख्याता | छंददि भजिसुवे ना निनगे अवधूता ॥३॥ जयदेव जयदेव ॥ (४) आरती करा हो सज्जन | द्वैतभाव टाकून ॥धृ॥ विवेक सद्बुद्धि । सद्बुद्धि | लक्ष लावुनी पदीं ।। अंत:- करण | मनशुद्धि । द्वैतातीतें बुद्धि ||१|| इडा पिंगळा | सुषुम्ना | मार्ग आहे कठीण || त्रिकूट संगम 1 समर्जन महालिंग दर्शन ||२|| चिन्मय गुरुमुर्ति | गुरुमूर्ति । अणुरेणू 1 • भासती ॥ बुद्धि भासाची | भासाचि । गुरुपुत्र जाणती ॥३॥ •