Jump to content

पान:छन्दोरचना.djvu/311

विकिस्रोत कडून
या पानाचे मुद्रितशोधन झालेले नाही

पीडीएफ सुरेशभट इन च्या सौजन्याने छन्दीरचना Ret {1-۔ ں ۔س~l ں ں -- س -۔ ں ں ۔۔ ں --- ] (ک^ہلا 8) بہ RTfTUf79 “ नावडे कवणास तल्लख झुत्तरा? हो गमे विदुषीच ती जगदुद्धरा. शान्त तों दिसतां सुशील अभागिनी हृदूगुणें मज ती गमे प्रिय रागिणी. (१८६) [----- ب - 1 ---- ب - l ------ں س-]( »اگ\ & ) جہد ”dYSITقب5}* ** वीज पाही दीपवी डोळे जनांचे, सुन्दरी कैशी कडाडे, काय नाचे ! साहचर्यातें नसेना चारु योषा । ठेविते शान्ति गृहीं जी मञ्जुघोषा. (१८७) 'सौन्दर्यमोहन? (माजूग ४६) ही कविता या मञ्जुघोषावृत्तांत आहे. { - l ---- س -- l ---- س ------- س --]( &کRTeRT(&Y श्रीहरीच्या सङ्गती ज्या रङ्गल्या गोपी प्रेमयोगों कोण गेली त्यांतुनी झोपों ? सिद्ध होऔीना हटाने योग तो साधा, साधिती सख्यें जहाली सुन्दरी राधा. (१८८) [------Iں ں -- س --- lں ں ۔ ں ہ-{ں ں --- س ---] (وکلا 8) ? "rGRTS}چ “ “ विप्रवृन्दमभूदलङ्कृतिगोधनैरपि पूर्णम् गायनानापि मद्विधान्व्रजनाथ तेोषय तूर्णम् सूनुरद्भुत सुन्दरोऽजनि नन्दराज तवायम् देहि गोष्ठजनाय वाञ्छितमुत्सवोचितदायम् ” ( रूस्तमाः २६१ ) यापुढील चतुष्पदीहि याच वृत्तांत आह. गीतगोविन्दांतील सातवा प्रबन्धहि याच नन्दराज वृत्तांत आहे असें दिसतें.

  • मामियं चलिता विलोक्य वृतं वधूनिचयेन

सापराधतया मयापि न वारेितातिभयेन किं करिष्यति किं वदिष्याते सा चिरं विरहेण किं जनेन धनेन किं मम जीवितेन ग्रहेण ” ( भीगी ३ रा सर्ग)