Jump to content

पान:छन्दोरचना.djvu/238

विकिस्रोत कडून
या पानाचे मुद्रितशोधन झालेले नाही

पीडीएफ सुरेशभट इन च्या सौजन्याने २११ वृत्तविहार दुरूनि नेत्रां दिपवि ती सुहासिनी धरी श्रुतीही करुण मञ्जुभाषिणी. (९) ‘ प्रतोलिकानां प्रतिादेश बहिर्दिवि ध्वजाः सहस्रेण लघुभिध्र्वजैर्वृताः बभुः पताका ध्रुवममीषु पल्लवा। विभोर्नभोमण्डपगकीर्तिवल्लिजाः' (अप १४/९० ) भिजी १४३ वी कविता या मञ्जुभाषिणीवृत्तांत आहे. [--- ن --- ن -- ن ں !-- س ن ں --- ب -----](g'$IT (Ro आशाळुनीच कुणि देअिल औकुनी धन चाटूक्तिने निज महत्त्व गमाविती जन; आधीच घे करुनिया मुखलेप-सोय तो काढी मृदङ्ग मधुर ध्वनि, धन्य होय तो. ( १०) हें वृत्त कविप्रिय होण्याजोगें आहे. --- ن --- ب --- س ن ں ن! --ں ہـ س-]( 8 f (R:پیم लक्ष्मीमुळे झुलष्ट खुलेच लक्ष्म तें, लक्ष्मीविना अिहसुख सर्व भस्मतें; लक्ष्मी करी प्रखर रणहि नन्दन—- लक्ष्मी ! तुला कवण करी न वन्दन ? ( ११ ) [-- ب - ب - ب س ن ں ! ہے۔ ں ہ- نی ] ( & 3 )Rf{RT न जीवनी मधु रुचि अङ्गनेविर्णे, वियत्पदाहुनि घडतां घडो च्युती, धरी झुरीं घन रुचिरा क्षणद्युती. ( १२) भिजी १३९ वी कविता या रुचिरा वृत्तांत आहे. पुढील श्लोकांत रुचिरा नि वंशस्थ यांचें मिश्रण आहे:-