पीडीएफ सुरेशभट इन च्या सौजन्याने १२३ वृत्तविस्तार यति 'ङ'चैः' असेच पाहिजेत. ११५ मकरन्दिका (स्वछ १०६, हे २/३२५); ** रसैः षड्भर्लोकैर्यमनसञ्जजा गुरुर्मकरन्दिका ” ( गच्छ २/२०३ ). ११६ अपराजिता (पि ७/६); ‘ननरसलघुगै: स्वरैरपराजिता।” (गछ २/११३). ११७ चल (हे २/३०६), अचल (स्वछ ८७); * म्भौ न्जौ भ्रौ चेत् चलमिदमुदितं युगैर्मुनिभिः स्वरैः ” ( गछ २/१८८)).. ११८ ** त्रौ भ्नौ ज्भौ रः कथागतिः छछेः ” (हे २/३४७). ११९ झुपमालिनी (स्वछ २९, हे २/२४९ ); ** नघ्नतभरकृताऽष्टः स्वरैरुपमालिनी ” ( गच्छ २/१४३). १२० मणिमञ्जरी, ** अिनाश्चैः स्याद् यभनयजञ्जगाः कीर्तिता मणिमञ्जरी ? (गछ २/२०४ ). १२१ भुजङ्गविजृम्भित (पि ७/३०); ** मैौ त्नौ नैौ रः सल्गाः प्राहुर्वसुमदनदहनमुनिभिभुजङ्गविजूम्भितम्' (झुवबृ १३०/४७). १२२“ म्तौ। यतौ निर्सल्गाः प्रमोदमहोदयो घञ्छटैः ” (हे २/३८३). १२३ ** मातनीजभ्राः पिपीलिका जगैः” (हे २/३८७). १२४-१२५-१२६ पिपीलिका वृत्तांत आठव्या अक्षरानन्तर पाच, दहा आणि पन्धरा लघू अधिक घातल्याने अनुक्रमें पिपीलिका-करभ, पिपीलिका-पणव आणि पिपीलिका-माला ही वृतें सिद्ध होतात (हे २/३८८-३९०). १० हरिणी-वर्ग जननीमुद-हरिणीपद १२७ सिंह ] ܚ - ܝ ܚ - ܚ !-- -- -- - ܚ ܝ ܚ -[ [~-ں -- ن ں -- یہ ! -----------------] Tشم]tarHھ محمۃ ? १२९ जया ]------------ ں ---ں ں ---ں ! -----ں-- १३० दर्दुरक [~~ ५ - ७ ७ -। ७ - ७ ७ - ७ -] - V - V V - V -- ں ں --- ں س ن ں ]ab&&HIfYUfn & 3 & [- ܚ - ܟ ܚ - ܚ |- ܚ ܝ - ܟ ܚ |- ܢ ܚ - ܢ ܚ ܝ ܚ ] Hàiܪ̈ܘ݂ ܪ ܕ ؟ १३३ हरेि ] ܚ - ܚ ܚ - ܚ !-- -- -- -- ܐ ܝ ܚ ܝ ܚ ܝ ܚ -[ १३४ हरिणी [• • • • • -!---- ! ७ - ७ ७ - ७ -] [- ܚ - ܚ ܢ ܼ- ܚ 1 - ܚ ܝ -- -1 - ܟ ܝ ܟ ܚ ܢ ] ܟigܖܪ̈܃ ܕ݁ܶ؟
पान:छन्दोरचना.djvu/150
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