पान:समता (Samata).pdf/54

विकिस्रोत कडून
या पानाचे मुद्रितशोधन झालेले नाही

वज्र की दीवार जब भी टूटती है नींव की यह वेदना, विकराल ब दौडता है दर्द कि तलवार बनकर पत्थरों के पेटसे, नरसिंह ले अवत काँपती है, वज्र की दीवार। आकाश से