पान:संपूर्ण भूषण.djvu/228

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१७८ देकर == चहुँ ओर बैर महि मेरु लागि साहितनै साहस झलक । फिरे एक ओर सिवराज नृप एक ओर सारी खलक ॥२८॥ (२८) भोट-समूह. चहुँ ओर चहूंकडे. खलक-जग. कौन करे बस वस्तु कौन यहि लोक बड़ी अति ? । को साहस को सिंधु कौन रज लाज धरे मति ? ॥ को चकवा को सुखद बस को सकल सुमन महि । अष्ट सिद्धि नव निद्धि देत मॉगे को सो कहि ? ॥ जग बूझत उत्तर देत इमि कवि भूषन कवि कुल सचिव ॥ दच्छिन नरेस सरजा सुभट साहचन्द मकरन्द सिव ॥ २९ ॥ (२९) को-कोण. रज-राजश्री. चकवा=चक्रवाक ( पक्षी ). बूझतविचारीत. निद्धि-निधि. कवित्त मनहरण साहूजी की साहिबी दिखात कछु होनहार जाके रजपूत भरे जोम बमकत हैं। भारे भारे नग्न वारे भागे घर तारे दे दे बाजे ज्यो नगारे घनघोर घमकत हैं। व्याकुल पठानी मुगलानी अकुलानी फिरें भूषन भनत मॉग मोती दमकत हैं। दच्छिन के आमिल भो सामिलहि चहुँओर चम्बल के आरपार नेजा चमकत हैं ॥ ३० ॥ (३०) बमकत-उसळत. नग्रनगर. तारे-ताले, कुलुपें. घमकत-दणदुणत. दमकत=चमकत. अमिल-अधिकारी. भो-झाले. सामिल हि। भो=मिसळले. नेजा-भाला. | बलख बुखारे मुलतान लो हहर पारै काबुल पुकारे कोऊ । धरत न सार है। रूम दि डारै खुरासान बँदि मारै खाक खादर लौं झारै ऐसी साहु की बहार है ॥ सक्खर लौं भक्खर लौं मकर लीं चले जात टक्कर लेवया कोऊ वार है। --