पान:छन्दोरचना.djvu/438

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पीडीएफ सुरेशभट इन च्या सौजन्याने 28 { जाति-जूम्भण ४ हरावर्तनी ७१ “ किङ्किणी ? ][ - -- ܚ - - | ܢܝ -- - | ܢܝ -- - | ܢܝ [ ७२ * अविनाशी? ]]I------ ںl ----- ں -- س - نl -----[ SR“エf'[Iーやーlーやーlーッーlーッーlーッーlーやーlー+] ७४ ' वरमङ्गला' ]l - ن -- l - ن -- l - ن - l - ن --[ ७५ * सुरमन्दिर ? ]I ں ہے۔ - l - س --[ ૭૬ “વોળાવતો ? [1ッ一ーlッーーlッーーlッー] [ں ----- {ں ---- lں --- س ---- |]?S & “ fahf&abUfiا ( १) ‘ णवजलहरेहिं व जललव मुअंतेहिं दढकढिणपविवलय परिबद्धदन्तेहिं रणझणिय मणिकिड़िकणीसोहमाणेहि अणवरष्यपरियलिय करडयलदाणेहिं ” (पुणा ७/१३/१) णायकुमारचरिभु या प्राकृत काव्यांत ७ वा सन्धि, १३ वें कडवें, ९ वा सन्धि, २० वें कडवें हीं या जातींत आहेत. (२) ' झुरला दिवस अल्प, घोडें थकुनि चूर पथ रानिं चढणींत, घर राहिलें दूर. go असशील घरेिं आज, तू गे बघत वाट, प्राण स्वनयनांत, पोटांत काहूर” ! १ (तासक २०४) ७२ ‘ अविनाशि? [। -- ७ । - - ७ । - - ५ । --] * अविनाशिा सुख तें ऽ मज पामराला प्रभु दअि तर शोक करूं मी कशाला १ स्वर्गी नसे दुक्ख, मरणाचि वार्ता परि प्रीति सुखशान्ति प्रभुची मनाला.” (झुस ६३५) ७३ 'दन्तरुचि'} [1ーやーlーやーlーやーlーッーlーッーlーやーlー一] “ वदास यदि किञ्चिदपि दन्तरुचिकोमुदी हरात दरतिमिरमतिघोरम् स्फुरदधरसीधवे तववदनचन्द्रमा रोचयति लोचनचकोरमू