पान:छन्दोरचना.djvu/154

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पीडीएफ सुरेशभट इन च्या सौजन्याने १२७ वृत्तविस्तार १६४ पृथ्वी ]ں ------۔ ب -- ب س نہ ! -- س -- ب س ن --- ب---[ १६५ वृन्दारक [पृथ्वी ! - ७ -- ० - १६६ शशाङ्कचरित [-- । पृथ्वी] [--- ب ---- ب - ب ن ں !--- ب --ں ب س ن ں ] }Te{RمHTوا && [س-ں ----- ب --- بہن بہ ! --- ن -- ن ں ] }dچH مح&? १६९ विपिनतिलक [७ ७ ७ ७ ~ - ! ب ----- ن -۔ ب س ن -- -- ب ----- ب --- ب س ن ] gfRdTمo gوا ? [- ܚ ܢ - ܝ -- - !- ܟ ܝ ܟ 1- ܝ - ܟ ܟ ܝ - ܟ ] lT»»ܟ݁dgܟ݂ ܀ 9 ܀ -- ن ں --- س -- ں ں ! -- - ܝ - ܟ ܝ ܚ ܢ ܢܝ ܟ ] lTܢܗܪ̈ܕ݁ܶT ܟ9 ܀ [- -- ܢܢ - ܢܢ - - | - ܢ ܢ ܚ ܢ ܢܝ -- -- -] f�dTܗܘܢg ܕ݁ܶܟ؟ १७४ माधवीलता[---- ७ --! ~ WV. V V -a V ںl - ب -- ب --[ --ں ب س ن -- ن ں ---------ں ں --- ب ----- ب ں --------] R &f&RT) و& टीपा १५७ मदनललिता (स्वछ ५०, हे २/२७६), * म्भौं नो म्नौ गो मदनललिता वेदैः षडृतुभिः ” (गच्छ २/१५२). १५८ **य्मौ न्सौ त्सौ क्रीडा चचैः” हे २/३१८), सुधा (गछ २/१८३). १५९*म्रौ भ्नौ म्नौ गूसुमधुरा छचैः” हें वृत्त रूढ दिसतें; पण याला प्राचीन आधार गावत नाही. १६० सुवदना (पि ७/२२), वृत्त (विवृ ५/४३); *म्रौ भ्नौ य्भौ ल्गैौ मुनिव्योमगरसविरतिः ख्याता सुवदना” (शुववृ १०३/६). १६१ सुरसाः “ म्रौ भनौ यो नो गुरुश्चेत् स्वरमुनिकरगैराहसुरसाम्” (गछ २/१९९) १६२ शार्दूलललित (स्वछ ७९, हे २/३११); * मः सो जः सतसा दिनेशऋतुभिः शार्दूलललितम्” ( गच्छ २/१८० ). १६३ *म्सौं ज्सौ न्जौ गो वायुवेगा छेः” (हे २/३२३). शार्दूललिताप्रमाणे यति 'ठे:' पाहिजे हें हेमचन्द्राच्याच झुदाहरणावरून दिसतें. या वृत्ताची ܐܶfܪ3r [- ܚ 1 - ܟ ܝ ܟ ܚ - ܐ ܝ ܚ ܢ ܼ- ܢܢ - 1 ܟ ܢܝ -- -- - | ] àigof घेतल्यास हें वृत्त पद्मावर्तनी होतें. १६४ पृथ्वी (पि ७/१७), विलम्बितगति (भ १६/८४, वबृ १०३/१६). “ जसौ जसयला वसुग्रहयतिश्च पृथ्वी गुरुः'