पान:छन्दोरचना.djvu/142

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पीडीएफ सुरेशभट इन च्या सौजन्याने &&'s वृत्तविस्तार [----ں ں I -- ں ں س- ن - ] HfoRST 8دا ५२ *लङ्का' ] ں ں [--ں س -- ں ن ں ----[ ५३ कुटजा ] 1- - ܟ ܝ |- ܟ ܝ ܚ - ܝ - ܚ ܟ[ 1- ܝ ܝ | -- ں ں ں -۔ ں ہے۔ ں ں ] fR{KlTR{RT کkY' ५५ प्रमिता ] ܝ ܝ ܝ - ܝ - ܚ ܝ - - ५६ स्रुत्थापनी ]------ ں ں ں س-ں-lں ب--[ [- ܝ ܟ t- ܚ ܟ ܝ - ܝ - ܟ ܝ ܚ ܝ ] xif0]qra 9ܢ ५८ यूथिका ] - 1- ܝ - ܟ ܝ |- ܝ ܝ ܟ - ܝ ५९ अच्युत ]-- بں -- س-- lی ---ں ن ---[ ६० 'जनकात्मजा' [ ७ ७ ७ - ७ ७ ७ - ܝ - ܟ ܝ ܐ - [ ६१ द्रुतविलम्बित ] ن ---ں ب||- نا ب - ن ں ں --[ ६२ अभरक as V - V V V -s !ب -۔ بں ---[ [-- ب - یہ بl --ں بں ۔۔ ب - نی ] at Hf&c{m 83 ६४ सुन्दर ] 1 - ب - نی --- باب - ب س ن - ب -۔[ ६५ मङ्गला ] باب 1۔۔۔ ب س ن -- بب بن --- lب --- بب -[ [- د -ں بl - بں -ں نہ –ں بں ] ”gfigs({Tللہ: )66 [- ب - بں I - ب - بں --ں بں ] PIHچgHifھ3 و& qT ४७ स्वागता (पि ६/२३), *स्वागतारनभगैगुरुतोऽन्ते” (भुवबू १०३/१९). या वृत्ताची मोडणी [। - ७ - ~ ` ५ !- ७ ७ --]] अशी घेतल्यास तें पद्मावर्तनी होअील. ४८ द्रुतपदा (हे), * द्रुतपदं नभञ्जयैः कथितं तत्” (श्रुववृ १०३/२०), कलहंसा (हे २/१६१), मुखर (हे). *दुतपदं भवति नभनयाश्रेत्” (गछ २/८८) असेंहि लक्षण आढळतें. ४९ भ्जौ सौ गु अम्बुज (ना १४५) हें वृत्त दुतपदाच्या आरम्भीं ओक गुरु अधिक घातल्याने होतॆ,'५० चन्द्रवत्र्म (हे २/१६२), ** चन्द्रवत्र्म निगदन्ति रनभसैः ” (के ३/४५). हें वृत्त [। - ७ - ५ ५ ५ । - • • • • -] अशी मोडणी घेतल्यास पद्मावर्तनी होअील.