सदस्य:विकास लोहगांवकर

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॥ महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम्॥

अयि गिरिनंदिनि नंदितमेदिनि विश्वविनोदिनि नंदनुते

गिरिवर विंध्य शिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते |

भगवति हे शितिकण्ठकुटुंबिनि भूरि कुटुंबिनि भूरि कृते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१||

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते

त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते |

दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||२||

अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रिय वासिनि हासरते

शिखरि शिरोमणि तुङ्ग हिमालय शृंग निजालय मध्यगते |

मधु मधुरे मधु कैटभ भंजिनि कैटभ भंजिनि रासरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||३||

अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुण्ड गजाधिपते

रिपु गज गण्ड विदारण चण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते |

निज भुज दण्ड निपातित खण्ड विपातित मुण्ड भटाधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||४||

अयि रण दुर्मद शत्रु वधोदित दुर्धर निर्जर शक्तिभृते

चतुर विचार धुरीण महाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते |

दुरित दुरीह दुराशय दुर्मति दानवदूत कृतांतमते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||५||

अयि शरणागत वैरि वधूवर वीर वराभय दायकरे

त्रिभुवन मस्तक शूल विरोधि शिरोधि कृतामल शूलकरे |

दुमिदुमि तामर दुंदुभिनाद महो मुखरीकृत तिग्मकरे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||६||

अयि निज हुँकृति मात्र निराकृत धूम्र विलोचन धूम्र शते

समर विशोषित शोणित बीज समुद्भव शोणित बीज लते |

शिव शिव शुंभ निशुंभ महाहव तर्पित भूत पिशाचरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||७||

धनुरनु संग रणक्षणसंग परिस्फुर दंग नटत्कटके

कनक पिषंग पृषत्क निषंग रसद्भट शृंग हतावटुके |

कृत चतुरङ्ग बलक्षिति रङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||८||

सुरललनाततथेयितथेयितथाभिनयोत्तरनृत्यरते

हासविलासहुलासमयि प्रणतार्तजनेऽमितप्रेमभरे |

धिमिकिटधिक्कटधिकटधिमिध्वनिघोरमृदंगनिनादरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||९||

जय जय जप्य जयेजय शब्द परस्तुति तत्पर विश्वनुते

झण झण झिञ्जिमि झिंकृत नूपुर सिंजित मोहित भूतपते |

नटित नटार्ध नटीनट नायक नाटित नाट्य सुगानरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१०||

अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कांतियुते

श्रित रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्त्रवृते |

सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||११||

सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्लक मल्लरते

विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते |

सितकृत फुल्लसमुल्ल सितारुण तल्लज पल्लव सल्ललिते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१२||

अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतङ्गज राजपते

त्रिभुवन भूषण भूत कलानिधि रूप पयोनिधि राजसुते |

अयि सुद तीजन लालसमानस मोहन मन्मथ राजसुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१३||

कमल दलामल कोमल कांति कलाकलितामल भाललते

सकल विलास कलानिलयक्रम केलि चलत्कल हंस कुले |

अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्भकुलालि कुले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१४||

कर मुरली रव वीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुमते

मिलित पुलिन्द मनोहर गुञ्जित रंजितशैल निकुञ्जगते |

निजगुण भूत महाशबरीगण सद्गुण संभृत केलितले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१५||

कटितट पीत दुकूल विचित्र मयूखतिरस्कृत चंद्र रुचे

प्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुल सन्नख चंद्र रुचे |

जित कनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भर कुंजर कुंभकुचे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१६||

विजित सहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते

कृत सुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते |

सुरथ समाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१७||

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे

अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् |

तव पदमेव परंपदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१८||

कनकलसत्कल सिन्धु जलैरनु सिञ्चिनुते गुण रङ्गभुवं

भजति स किं न शचीकुच कुंभ तटी परिरंभ सुखानुभवम् |

तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवं

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||१९||

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते

किमु पुरुहूत पुरीन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते |

मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||२०||

अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे

अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथाऽनुमितासिरते |

यदुचितमत्र भवत्युररि कुरुतादुरुतापमपाकुरुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||२१||