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प्रस्तावना | १ ते ५९ | |
पत्र क्र. १०० | शतपत्रांचा इत्यर्थ | ६३ ते ६५ |
१. विद्या | ६६ ते १२८ | |
पत्र क्र. ३ | पुण्यात लायब्ररीची स्थापना | ६६ |
७ | छापण्याची कला आणि म्हातारपणी लग्न | ६८ |
८ | जुन्या समजुती | ७० |
१९ | हिंदू लोकांचा आळशी स्वभाव | ७३ |
२४ | नशिबावर हवाला | ७६ |
३१ | इंग्रजी विद्या | ७९ |
३३ | अर्थशून्य ब्राह्मणविद्या | ८३ |
५० | स्वराज्यातील विद्वान | ८५ |
५५ | पुराणांतील ज्ञान | ८८ |
५६ | नादविद्या | ९० |
५९ | लोकांची समजूत व पुराणादिकांचे सौरस्य | ९४ |
६९ | संस्कृत आणि इंग्रजी विद्या | ९७ |
७७ | पाठ करण्याची चाल | ९९ |
८० | कमती कशाची ? | १०२ |
८१ | प्राचीन ग्रंथांचे अर्थ | १०५ |
८२ | प्राचीन ग्रंथांचे महत्त्व | १०७ |
८४ | संस्कृत विद्या | ११० |
८५ | ज्ञान हाच पराक्रम | ११४ |
८६ | सांप्रतचे पंडितांचे ज्ञान | ११७ |
९३ | नवीन ग्रंथांची आवश्यकता | १२० |
९५ | अभिमान | १२३ |
९७ | सुशिक्षा व पंतोजी आणि संस्कृत व इंग्रजी भाषा | १२६ |
१०१ | संस्कृत विद्या | १२८ |
२. हिंदूंचे धार्मिक जीवन | १३३ ते २०३ | |
पत्र क्र. ४ | शिमग्याचा दुराचार | १३३ |