पान:साहित्य आणि संस्कृती (Sahitya ani sanskurti).pdf/175

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संवेदनशील आस्थावान साहित्यकारांपैकीच होत. त्यांनी या पुस्तकाच्या पहिल्या खंडाचा शेवट ‘अभिमन्यु अब नहीं मरेगा' सारख्या आशावादी लेनेनी केला आहे. या लेखाचा प्रारंभ वाचकास विषयाचे गांभीर्य सुरुवातीसच समजावत बजावतो की, “एक अनोखे युग में रह रहे है हम। एक ओर वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियाँ आकाश को छू रही है तो दूसरी ओर इन्हीं उपलब्धियों का जनक मनुष्य नाम का प्राणी चारित्रिक अधोपतन की पराकाष्ठा पर पहुँच गया है। ऐसी स्थिति में जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे एक भयानक घमासान मच उठा है उसी के अपने अंतर में, जो दिशाहीनता, अनास्था और विकृत चिंतन के कारण महानाश की ओर ले जा रहा है। नाना रूप आंतकवाद का जन्म ऐसी ही परिस्थितीयों में होता है। और मैं जब ये शब्द लिख रहा हूँ तो निश्चय ही इस देश में ऐसे व्यक्ति भी है जो आस्था का नन्हासा दिया जलाकर मौसम को तूफान चलाने की चुनौती दे रहे है।" या चिंतनातून लेखकाची देश, संस्कृती, काळ इत्यादी संबंधी आस्था आणि चिंता व्यक्त होते. पण तो निराश नाही. त्याचं म्हणणंच आहे की, “अभिमन्यु इस युग में चक्रव्यूह में प्रवेश करने के बाद मरेगा नहीं बल्कि वह इस चक्रव्यूह को छिन्न-भिन्न कर देगा और उन सप्त महारथियों को कहीं ठोर (स्थान) नहीं मिलेगी। वे अपनी मौत आप मर जायेंगे और आस्था का वह नन्हा-सा दिया मौसम के तुफानों को झेलता हुआ उसी तरह प्रकाश बिखरता रहेगा सूर्य के आगमन की प्रतीक्षा करता हुआ।"
 विपरीत स्थितीत आशेचा किरण प्रज्वलित करणारी ही दोन पुस्तकं म्हणूनच प्रासंगिक ठरतात आणि मननीयही!


जन, समाज और संस्कृति विष्णू प्रभाकर शब्दांकार प्रकाशन १५९, गुरू अंगदनगर (पश्चिम) दिल्ली - ११००९२ पृ. १५५/ रु. ३५/प्रकाशन - १९८६. • संस्कृति क्या है? विष्णू प्रभाकर सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन एन-७७, पहली मंजिल, कॅनॉट सर्कस, नवी दिल्ली - १०००१ पृ. १४४/ रु. ९०/प्रकाशन. २०१५

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साहित्य आणि संस्कृती/१७४