पान:वाचन (Vachan).pdf/१४२

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डॉ. रतन कुमार पाण्डेय -

■ किसी समय सार्वजनिक पुस्तकालय और वाचनालय जन-मन को पाठक बनाने में अपनी महती भूमिका निभाते थे। आज पुस्तकालय-ग्रंथालय संस्कृति के न्हास ने मनुष्य-वृत्ति का बड़ा क्षरण किया हैं।

शरद जोशी -

■ पुस्तकालय पाठकों के अभाव में पुस्तकों के गोदाम बने हैं।

डॉ. अर्जुन चव्हान -

■ पुस्तक संस्कृति व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को उन्नत बनाने वाली संस्कृती है।

डॉ. परमानंद श्रीवास्तव -

■ लेखक रहे न रहे, किताब पुरानी होकर भी नयी रहेगी।

 (संदर्भ:अनभै-पुस्तक संस्कृति विशेषांक - संपा प्रांजलधर/अमिय बिंद)

टपर -

■ आज के लिए और सदा के लिए सबसे बड़ा मित्र अच्छी पुस्तक!

कार्लाइल -

■ पुस्तकों का संकलन ही आज के युग का वास्तविक विद्यालय है ।

ओडोर पार्कर -

■ जो पुस्तकें हमें अधिक विचारने को बाध्य करती है, वे ही हमारी सबसे बड़ी सहायक है ।

रयूफस कोएट -

■ पुस्तक ही एकमात्र अमरत्व है ।

■ केवल पुस्तक ही अमर है ।

वाल्टेयर -

■ असभ्य राष्ट्रों को छोड़कर शेष सम्पूर्ण विश्व पर पुस्तकों का ही शासन है।

वाचन १४१