डॉ. रतन कुमार पाण्डेय -
■ किसी समय सार्वजनिक पुस्तकालय और वाचनालय जन-मन को पाठक बनाने में अपनी महती भूमिका निभाते थे। आज पुस्तकालय-ग्रंथालय संस्कृति के न्हास ने मनुष्य-वृत्ति का बड़ा क्षरण किया हैं।
शरद जोशी -
■ पुस्तकालय पाठकों के अभाव में पुस्तकों के गोदाम बने हैं।
डॉ. अर्जुन चव्हान -
■ पुस्तक संस्कृति व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को उन्नत बनाने वाली संस्कृती है।
डॉ. परमानंद श्रीवास्तव -
■ लेखक रहे न रहे, किताब पुरानी होकर भी नयी रहेगी।
(संदर्भ:अनभै-पुस्तक संस्कृति विशेषांक - संपा प्रांजलधर/अमिय बिंद)
टपर -
■ आज के लिए और सदा के लिए सबसे बड़ा मित्र अच्छी पुस्तक!
कार्लाइल -
■ पुस्तकों का संकलन ही आज के युग का वास्तविक विद्यालय है ।
ओडोर पार्कर -
■ जो पुस्तकें हमें अधिक विचारने को बाध्य करती है, वे ही हमारी सबसे बड़ी सहायक है ।
रयूफस कोएट -
■ पुस्तक ही एकमात्र अमरत्व है ।
■ केवल पुस्तक ही अमर है ।
वाल्टेयर -
■ असभ्य राष्ट्रों को छोड़कर शेष सम्पूर्ण विश्व पर पुस्तकों का ही शासन है।